
ओ परिंदे,
यूं साखो पर बैठकर क्यों आसमान को देखता है,
पंखों को खोल,
क्योंकि ज़माना सिर्फ़ उड़ान देखता है।
तूफानों की आदत तबाही है।
तूफानों से करनी तुझे लड़ाई है।
पर याद रख तू,
परिंदे जब उड़ान में है,
तीर हर कमान में है।
आज सिर्फ तूफान नहीं तेरे सामने,
खोट हर किसी के ईमान में है।
रख खुद पर तू यकीन उद्द चल कहीं दूर,
तेरा खुलूस आज इम्तहान में है।